Friday, August 12, 2011

खास तिरंगा स्वराज आश्रम का

खास तिरंगा स्वराज आश्रम का

पूरे देश में स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस पर सभी प्रमुख स्थानों और सरकारी-गैर सरकारी संस्थानों में खादी का तिरंगा झंडा फहराया जाता है। आइए जानते हैं हम तक कैसे पहुंचता है स्वराज आश्रम में मिलने वाला पारंपरिक खादी का तिरंगा झंडा।गणतंत्र दिवस के दिन हर जगह लहराने वाले ये झंडे मुंबई की खादी ग्रामोद्योग बोर्ड में बनते हैं। यह पूरी तरह से हाथ से बने होते हैं। इन्हें बनाने के लिए सबसे पहले सूत काता जाता है, फिर उसे बुनकर सूती कपड़ा तैयार कर लिया जाता है। इसके बाद इस कपड़े को तीन रंग में रंग लिया जाता है। फिर उन कपड़ों को नापकर उन्हें कई अलग-अलग साइज में सिल लिया जाता है। विभिन्न साइजों में झंडे तैयार होने के बाद अशोक चक्र की छपाई की जाती है। पूरी तरह से झंडे तैयार होने के बाद झंडों को जांचा जाता है और फिर आईएसआई की मोहर लगने के बाद इन्हें देश भर के स्वराज आश्रम भेजा जाता है।खादी के आईएसआई मार्का झंडे आपको सिर्फ खादी ग्रामोद्योग केंद्र में ही मिलेंगे। स्वराज आश्रम में राष्टï्रीय ध्वज में कोई छूट नहीं होती है। 7&4 फुट, 6&4 फुट, 6&3 फुट तथा 60&90 सेंटीमीटर के झंडे यहां उपलब्ध होते हैं।



Saturday, September 19, 2009

1 foot, 11 inches tall (58cm), 16-year-old Worlds Smallest Girl Jyoti Amge




छोटे कद से मिली बड़ी पहचान




कभी-कभी लोग जिसे अभिशाप समझते है वही वरदान साबित हो जाता है। ऐसा ही कुछ पंद्रह वर्षीया ज्योति आमगे के साथ भी है। खड़े होने पर उसकी लंबाई सिर्फ दो फुट और वजन एक पत्थर से भी कम है, लेकिन आज वह पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो चुकी है।
ज्योति का स्कूल जाने के लिए छोटा सा ग्रे रंग का ड्रेस, छोटा बैग और क्लास में उसके लिए स्पेशल बनाई गई छोटी डेस्क है। वह अपने क्लास के अन्य बच्चों के सामने छोटी गुडि़या जैसी दिखती है। वह कहती है, ''तीन साल की उम्र में मैंने महसूस किया कि मैं अन्य बच्चों से कुछ अलग हूं और मुझे भी बड़ा होना चाहिए। स्कूल के शुरुआती दिनों में मैं वहां सबको अपने से बड़ा देखकर डर जाती थी, लेकिन अब मैं सही हूं। मुझे स्कूल जाना अच्छा लगता है। वहां मेरी डेस्क और कुर्सी सबसे अलग है, जो स्पेशल मेरे लिए ही बनी है। मैं एक साधारण स्टूडेट की तरह हूं।''
जन्म के समय ज्योति तीन पाउंड की थीं तब से उनका वजन केवल नौ पाउंड ही बढ़ा है। छोटे कद के कारण उन्हें अपने गृह नगर नागपुर में मिनी सेलेब्रेटी की तरह सम्मान मिलता है। वह कहती है, ''मुझे पता है कि दुनिया में बहुत से लोग मेरे जैसे बौने है। मैं अन्य लोगों की तरह ही हूं। मैं आपकी तरह खाती हूं, आपकी तरह सपने देखती हूं और कुछ भी अलग महसूस नहीं करती हूं। मुझे छोटा होने से डर नहीं लगता और इसका कोई अफसोस भी नहीं है, बल्कि मुझे छोटी लड़की होने पर गर्व है।''
ज्योति की माँ रंजना कहती है, ''ज्योति छोटी है, लेकिन बहुत प्यारी भी है। हम सभी उसे बहुत प्यार करते है।'' बड़ी बहन अर्चना कहती है, ''बचपन से ही मैं इसकी देखभाल कर रही हूं। यह बहुत ही व्यवहार कुशल और कोमल हृदय की है।'' पिता किशन आमगे कहते है, ''इसने मेरा सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है। कई साधु महात्मा उसे देखने आते है और आशीर्वाद देते है। वह ज्योति की खुशी और लंबी उम्र की दुआ करते है।''
ज्योति एक्ट्रेस बनना चाहती थीं लेकिन पांव का फै्रक्चर होने के बाद उसे चलने-फिरने में तकलीफ होने लगी, जिससे उनका यह सपना टूट गया। हालांकि ग्लैमर जगत से जुड़ने की उसके दिल की मुराद पॉप स्टार मीका सिंह ने पॉप एल्बम में काम करने का ऑफर देकर पूरी कर दी है।

Indian Tennis Hero Leander Paes.


लगा पेस का ऐस


जिस उम्र में अधिकतर खिलाड़ी रैकेट खूंटी पर टांग खेल को अलविदा कह देते है, 36 वर्षीय लिएंडर पेस अभी भी बड़ी ट्राफियां जीत रहे है। टेनिस के प्रति चाहत, जबरदस्त फिटनेस और खुद पर विश्वास उनमें जीतने का जज्बा पैदा करता है। 2009 की शुरुआत में जीते गए फ्रेंच ओपन और इसी सितंबर में जीते गए यूएस ओपन सहित उनके दस ग्रैंड टाइटल इसी का परिणाम हैं।
[विरासत में मिली खेल भावना]
17 जून 1973 को एक कैथोलिक ईसाई परिवार में जन्मे लिएंडर पेस को खेल भावना विरासत में मिली। उनके पिता वेस पेस और मां जेनिफर दोनों ही अलग-अलग खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके है। वेस पेस म्यूनिख ओलंपिक में कांस्य पदक विजेता भारतीय हाकी टीम के मिडफील्डर थे, वहीं जेनिफर एशियन बास्केटबाल चैंपियनशिप में भारतीय टीम की कप्तान थीं।
[थी फुटबॉल की दीवानगी]
लिएंडर पेस ने अपनी शिक्षा ला मार्टिनियर व सेंट जेवियर्स कालेज, कोलकाता से प्राप्त की। शुरुआती दिनों में वे फुटबॉल के दीवाने थे, लेकिन घुटने की जबर्दस्त चोट के बाद वे टेनिस की ओर मुड़ गए। उन्होंने चेन्नई स्थित ब्रिटानिया अमृतराज टेनिस अकादमी (बैट) में कोच डेव ओमीरा से इस खेल की बारीकियों को सीखा। 1990 में विंबलडन जूनियर ग्रैंड स्लैम जीतकर वह व‌र्ल्ड जूनियर नंबर वन की पोजीशन पर आ गए।
[प्रोफेशनल टाइटल्स की भरमार]
प्रोफेशनल टेनिस में प्रवेश के बीस साल बाद भी लिएंडर पेस के उत्साह और जोश की बराबरी नए खिलाड़ी तक नहीं कर पाते है। 1990 के बाद लिएंडर पेस टेनिस की नित नई ऊंचाईयों को छूते रहे हैं। बार्सिलोना ओलंपिक (1992) में रमेश कृष्णन के साथ क्वार्टर फाइनल तक का सफर तय करने के बाद उनमें टेनिस के महारथियों के खिलाफ खेलने का आत्मविश्वास आ गया। चार साल बाद अटलांटा ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर वह के.डी. जाधव (म्यूनिख ओलंपिक में रेस्लिंग में कांस्य पदक) के बाद व्यक्तिगत स्पर्धा में कोई पदक जीतने वाले दूसरे भारतीय बने। इसके बाद लिएंडर पेस नेशनल हीरो बन गए और इस उपलब्धि के लिए उन्हे राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित किया गया। अब तक उनके नाम 41 डबल टाइटल दर्ज है। भारत के दूसरे सफलतम टेनिस खिलाड़ी महेश भूपति के साथ उन्होंने तीन ग्रैंड स्लैम टाइटल जीते है। वह आज भी भारत के सबसे सफल टेनिस खिलाड़ी है और खुद को दिन-प्रतिदिन और मजबूत करते जा रहे हैं।
[जोड़ीदारों के लिए भाग्यशाली]
टेनिस के लिए जीने वाला यह खिलाड़ी अपने सभी जोड़ीदारों के लिए भाग्यशाली साबित हुआ। अटलांटा ओलंपिक के बाद लिएंडर पेस ने महेश भूपति के साथ जोड़ी बनाकर यूएस ओपन (1997) के सेमीफाइनल का सफर तय किया। 1998 में इस जोड़ी ने ऑस्ट्रेलियन, फ्रेंच और यूएस ओपन ग्रैंड स्लैम के फाइनल में जगह बनाई। लिएंडर पेस ने इसी वर्ष कारा ब्लैक के साथ मिलकर यूएस ओपन का मिक्स डबल टाइटल अपने नाम किया। लिएंडर पेस और महेश भूपति का गठबंधन 1999 में ग्रैंड स्लैम टेनिस टूर्नामेंट जीतने वाली पहली भारतीय जोड़ी के रूप में सामने आया। 1999 में ही पेस ने लीसा रेमंड के साथ विंबलडन का मिक्स डबल टाइटल भी जीता। लिएंडर पेस ने 2003 में मार्टिना नवरातिलोवा के साथ जोड़ी बनाकर ऑस्ट्रेलियन ओपन और विंबलडन का टाइटल जीता।
[बीमारी के बाद शानदार वापसी]
खिलाड़ी के तौर पर लिएंडर पेस के आत्मविश्वास और साहस की जितनी तारीफ की जाए, वह कम है। 2003 में शरीर को कमजोर कर देने वाली भयावह बीमारी के बाद उनकी वापसी आश्चर्यजनक थी। विंबलडन की जीत के कुछ सप्ताह बाद उन्हे ब्रेन ट्यूमर के संदेह के कारण कैंसर सेंटर में भर्ती होना पड़ा, जोकि बाद में दिमागी संक्रमण निकला। ठीक होने के बाद उन्होंने शानदार वापसी की और महेश भूपति के साथ मिलकर एथेंस ओलंपिक के सेमीफाइनल में जगह बनाई। तब उनके फार्म और फिटनेस को देख कर यह साफ संकेत मिल गया था कि वे अभी कॅरियर की लंबी इनिंग खेलेंगे।

....और ऐसा ही हुआ भी!

Saturday, August 8, 2009

Prakash Padukone "Great badminton player".


बैडमिंटन का माहानायक: प्रकाश पादुकोण


भारत में जब भी खेलजगत के महारथियों की बात की जाएगी, कुछ ही खिलाड़ी होंगे, जो प्रकाश पादुकोण की बराबरी कर सकेंगे। वह जब तक खेलते रहे, हमेशा शीर्ष पर रहे। बैडमिंटन के यह विश्वविजेता खिलाड़ी अर्जुन अवार्ड और पद्मश्री प्राप्त कर चुके हैं। सकारात्मक विचारों के धनी प्रकाश अपनी मीठी भाषा और विनम्र व्यक्तित्व से हर किसी को अपना प्रशंसक बना लेते है।
10 जून 1955 को बंगलुरु में जन्मे प्रकाश आज भी खुद को अपनी जड़ों से जोड़े हुए है। कई वर्षो तक मैसूर बैडमिंटन एसोसिएशन के सेक्रेटरी रहे उनके पिता रमेश पादुकोण ने उनका परिचय बहुत छोटी उम्र में ही इस खेल से करा दिया था। 6 वर्ष की उम्र में स्टेट जूनियर चैंपियनशिप में अपना पहला मैच हारने के बाद उन्होंने कोर्ट छोड़ने से मना कर दिया, फिर मैसूर बैडमिंटन एसोसिएशन के नया रैकेट देने के वादे के बाद वह वहां से हटे। उनके अनुसार, ''मुझे याद है कि मैं बहुत अपसेट हो गया था। अच्छा खेलने के बावजूद खराब रैकेट ने मुझे हार के मुंह में धकेल दिया था।''
दो साल बाद प्रकाश ने मैसूर स्टेट जूनियर चैंपियनशिप का खिताब जीत लिया और उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1970 में उन्होंने पहली बार नेशनल जूनियर चैंपियनशिप पर कब्जा किया। जबलपुर में एक मैच के दौरान अपने आदर्श खिलाड़ी रूडी हार्टोन का आक्रामक खेल देखकर उन्होंने अपने खेल को भी आक्रामक शैली में ढाल लिया। इस आक्रामक और फुर्तीले खेल से 1971 में एकसाथ जूनियर और सीनियर नेशनल खिताब जीतकर वह 'साइलेंट टाइगर' के नाम से मशहूर हो गए।
प्रकाश ने इसके बाद लगातार नौ बार नेशनल सीनियर खिताब पर कब्जा जमाए रखा। 1978 में प्रकाश ने कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मैडल भी जीता। उन्होंने लीम स्वी किंग को सीधे सेटों में हराकर 1980 में ऑल इंग्लैंड ओपन का खिताब अपने नाम किया, जो उनके कॅरियर के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। यह टूर्नामेंट जीतने के बाद वह विश्व की नंबर एक वरीयता पर आ गए।
1980 में स्वीडिश ओपन के दौरान रूडी हार्टोन को हराने के बाद जब उनसे पूछा गया कि 'अपने आदर्श खिलाड़ी को हराकर आप कैसा महसूस कर रहे है?' उन्होंने विनम्रता से कहा, ''मैंने पिछले गेम में उन्हें 15-0 से हरा दिया होता, लेकिन मैं अपने आदर्श खिलाड़ी के साथ ऐसा नहीं कर सकता था। इसलिए मैंने एक प्वाइंट छोड़कर मैच खत्म कर दिया।''
अपने कॅरियर में सैकड़ों सितारे जड़ने वाले प्रकाश को भारत सरकार ने 1972 में अर्जुन अवार्ड और 1982 में पद्मश्री से सम्मानित किया। उन्होंने 1988 में प्रोफेशनल बैडमिंटन से विदा ली। 1991 में कुछ समय के लिए उन्होंने नेशनल बैडमिंटन एसोसिएशन के चेयरमैन के रूप में काम किया। 1993 और 1996 में वह भारतीय राष्ट्रीय टीम के कोच भी रहे।
वर्तमान में प्रकाश बंगलुरु स्थित अपनी बैडमिंटन अकादमी में भारत के लिए युवा प्रतिभाओं को निखारने का काम कर रहे है। उनकी अकादमी में चुने गए प्रशिक्षुओं को पढ़ने, रहने और खाने-पीने के लिए संपूर्ण छात्रवृत्तिमिलती है। उनकी अकादमी के प्रशिक्षुओं ने स्टेट, नेशनल और इंटरनेशनल चैंपियनशिप्स में जीत दर्ज की है। प्रकाश अपने अनुभवों से उन्हे उत्साहित करके प्रभावशाली खेल के गुर सिखाते है। खाली समय में वे स्क्वॉश खेलना और अपनी फिल्म अभिनेत्री बेटी दीपिका पादुकोण से बात करना पसंद करते है!

Sunday, June 14, 2009

MANGO, MANGO, MANGO, MANGO,

कुछ ख़ास है आम का स्वाद

टुकड़े करके खाएं या रस पिएं, इसके जुबान पर लगते ही गर्मियों की तपिश गायब हो जाती है। 'मालगोवाज', 'मंगोट', 'मंगा', 'मंगाऊ', 'मंगकई', 'मैंगो' या फिर 'आम'; लोग जिस नाम से भी इसे पुकारें, स्वाद और गुणों के मामले में निर्विवाद रूप से यह फलों का राजा है।
गर्मियों के दिनों में आम हिंदुस्तानी घरों में लगभग हर डिश के साथ शामिल रहता है। यदि आप सोचते है कि आम को सिर्फ चूस या काटकर ही खाया जाता है, तो जानकारी अपडेट करते हुए यह जान लें कि आम से सैंडविच, मॉकटेल, केक, चाट और मिठाई भी बनाई जाती हैं।
उदय कांटिनेंटल के शेफ पी. मधुर बताते है, ''गर्मियों में हम आम से लगभग 10 से 12 खास रेसिपी तैयार करते है। इसके अलावा शर्बत, केक, आइसक्रीम, फ्रूट पंच और सैंडविच तो होते ही है।'' अपने प्रसिद्ध मैंगो चीज सैंडविच की विधि बताते हुए मधुर कहते है, ''आम के टुकड़े कर इसमें खीरा, प्याज और टमाटर मिला लेते है। सबको आपस में अच्छी तरह से मिलाने के बाद काली मिर्च, नमक और नींबू का रस डाल देते है। अब सलाद मसाला व चीज के साथ इसकी तह ब्रेड में लगा देते है। फ्रिज में रखने के बाद स्वादिष्ट ठंडा मैंगो चीज सैंडविच खाने के लिए तैयार है।''
उत्तर प्रदेश के देहाती इलाकों की बात करें तो यहां लगभग प्रत्येक घर में पारंपरिक अमरस खाने को मिल जाएगा। हां, जब आम से बने मीठे और नमकीन के मिश्रण की बात आती है तो हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले की बात जरूर की जाएगी। स्थानीय निवासी उड़द की दाल के साथ आम को मिलाकर कचौड़ी के रूप मे खाते है।
मैंगो जूस तो आपने बहुत पिया होगा, लेकिन अब इसका नया रूप मैंगो मॉकटेल लोगों को लुभा रहा है। कुकरी क्लास संचालिका अनु कपूर कहती हैं, ''यह गर्मियों का शानदार ड्रिंक है। खस सीरप, नींबू का रस, रूहआफजा, वनीला आइसक्रीम और सोडा या स्प्राइट को मिलाकर बनाया गया मैंगो मॉकटेल तपती गर्मी में आपको तरोताजा कर देता है।'' क्या आप मैंगो सलाद खाना पसंद करेगे? अनु इसकी रेसिपी भी बताती है, ''मैंगो सलाद कच्चे आम और हरे पपीते से बनाया जाता है। आम और हरे पपीते को पीसकर एक प्याले में ठीक से मिला लें। इसमें ऑलिव ऑयल, ओरेगानो, शिमला मिर्च, खीरा और पीली मिर्च का पाउडर मिला लें। मैंगो सलाद तैयार है।'' इसी क्रम में मैंगो मूसे, मैंगो टार्ट, श्रीखंड की तर्ज पर आमखंड , मैंगो पेस्ट्री और मैंगो स्टफ्ड लीची विद आइसक्रीम जैसी आम से बनने वाली डिशेज की लिस्ट का कोई अंत नहीं है!

[फास्ट फैक्ट]
आम को यूं ही फलों का राजा नहीं कहा जाता है। कालीदास ने इसका गुणगान किया, सिकंदर ने इसे सराहा और सम्राट अकबर ने दरभंगा में इसके एक लाख पौधे लगवाए। इस बाग को आज भी 'लाखी बाग' के नाम से जाना जाता है। आम को कई नवाबों और राजाओं के नामों से भी जाना जाता है, जैसे कृष्ण भाग, शम्सुल अस्मर, खासा, प्रिंस, तैमूर लंग, आबे हयात, इमामुद्दीन खान और हलवा आदि।

Sunday, May 3, 2009

Profile of face book CEO Mark Zuckerberg


सबसे युवा अरबपति


May 02, 11:11 pm
सामान्यत: लोग इंटरनेट को जानकारी लेने, लोगों से जुड़ने और चैटिंग करने के लिए ही इस्तेमाल करते है। बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो साइबर संसार से जुड़ी हर चीज का इस्तेमाल भली प्रकार करना और इनमें इनोवेशन करना जानते है। इन्हीं में से एक है 'फेसबुक' नामक सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट के संस्थापक 25 वर्षीय मार्क जुकरबर्ग, जो इसकी वजह से बन गए है दुनिया के सबसे युवा अरबपति।
व्यवसाय से कंप्यूटर प्रोग्रामर मार्क ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ते समय फेसबुक का निर्माण किया, जो आज विश्व भर के छात्रों और युवाओं के बीच प्रसिद्ध है। फेसबुक के सीईओ मार्क को 'टाइम' मैग्जीन ने वर्ष के सबसे अमीर व्यक्तियों की सूची में शामिल किया है। इस सूची में उन्हे अंतर्राष्ट्रीय पटल पर नई क्रांति लाने वाले बराक ओबामा, दलाई लामा और माइकल फेल्प्स के साथ जगह दी गई है।
[बचपन से कंप्यूटर प्रेमी]
14 मई 1984 को न्यूयार्क के डॉक्टर दंपति एडवर्ड और कैरन जुकरबर्ग के घर जन्मे मार्क बचपन से ही कंप्यूटर प्रेमी थे। मिडिल स्कूल में पढ़ते समय ही उन्होंने कंप्यूटर प्रोग्रामिंग शुरू कर दी थी। उन्हे नए-नए प्रोग्राम, कम्युनिकेशन टूल्स और गेम्स बनाना पसंद था। हाईस्कूल में पढ़ते समय मार्क ने पिता के ऑफिस में काम करने वाले कर्मचारियों के बात करने के लिए कम्युनिकेशन प्रोग्राम तैयार किया। उसके बाद उन्होंने 'सिनैप्स' नामक म्यूजिक प्लेयर बनाया, जो उसे इस्तेमाल करने वाले की आदतों को ट्रैक कर लेता था। माइक्रोसॉफ्ट और एओएल ने सिनैप्स खरीदने और मार्क को जॉब देने का प्रयास किया, लेकिन उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में प्रवेश लेने का निर्णय लिया।
[हॉस्टल रूम में बनाई फेसबुक]
मार्क ने फेसबुक का प्रारंभ अपने हॉस्टल के रूम से 4 फरवरी 2004 में किया। यह बहुत जल्दी हार्वर्ड में प्रसिद्ध हो गई और कालेज के दो-तिहाई छात्र पहले दो सप्ताह में ही इसमें शामिल हो गए। हार्वर्ड में प्रसिद्ध होने के बाद मार्क ने इसे अन्य शैक्षिक संस्थानों में भी फैलाने की ठानी और इसके लिए उन्होंने अपने रूम पार्टनर डस्टिन मोस्कोविट्ज की सहायता ली। 2004 की गर्मियों में मार्क और मोस्कोविट्ज ने इसे पैंतालिस शैक्षिक संस्थानों में विस्तृत कर दिया और जल्द ही इसमें हजारों छात्र शामिल हो गए।
[कैलिफोर्निया का क्रांतिकारी सफर]
2004 की गर्मियों में ही मार्क व मोस्कोविट्ज अपने कुछ अन्य मित्रों के साथ पालो अल्टो, कैलिफोर्निया आ गए। मार्क ने कैलिफोर्निया में बर्फ गिरने के कारण ग्रुप के साथ ने वापस हार्वर्ड लौटने की तैयारी शुरू की, लेकिन फिर अचानक उन्होंने निर्णय किया कि यहीं रहना चाहिए। उस दिन के बाद वह एक छात्र के रूप में लौटकर हार्वर्ड नहीं गए। उन्होंने कैलिफोर्निया में एक छोटा सा घर किराए पर लिया और ऑफिस के रूप में वहां काम करना शुरू किया। गर्मियों के बाद उनकी मुलाकात पीटर थील से हुई, जो मार्क की कंपनी में पूंजी लगाने को तैयार हो गए। कुछ माह बाद पालो अल्टो स्थित यूनिवर्सिटी के पास उन्हें अपना पहला 'असली ऑफिस' मिला। आज वहां सात इमारतों में फेसबुक के सैकड़ों कर्मचारी काम कर रहे है। मार्क ने इस जगह को 'अर्बन कैंपस' का नाम दिया है।
[नई सेवाओं ने बढ़ाई गुणवत्ता]
5 सितंबर 2006 को मार्क ने फेसबुक की गुणवत्ता बढ़ाते हुए उसमें कुछ बदलाव किए। अब फेसबुक में यूजर यह भी देख सकते थे कि उनका मित्र साइट पर क्या कर रहा है? 24 मई 2007 को मार्क ने फेसबुक प्लेटफॉर्म की घोषणा की। इस प्लेटफॉर्म पर प्रोग्रामर सोशल एप्लीकेशन विकसित कर सकते थे। एक सप्ताह में ही इसमें कई प्रोग्रामर ने सोशल एप्लीकेशन बनाई और उन एप्लीकेशन को लाखों उपभोक्ता भी मिल गए। आज फेसबुक प्लेटफॉर्म का फायदा दुनिया भर में करीब 4,00,000 लोग उठा रहे है। इसके दो साल बाद फेसबुक ने विश्व के नंबर एक सर्च इंजन गूगल की बोली को नकार कर अपने शेयरों की 1.6 प्रतिशत साझेदारी माइक्रोसॉफ्ट कॉरपोरेशन को 240 मिलियन डॉलर में बेच दी। इस बोली के समय यह तथ्य भी सामने आया कि उस समय फेसबुक की कुल मार्केट वैल्यू 515 बिलियन डॉलर थी!

Friday, May 1, 2009

A Story of IPL Hero KAMRAN KHAN Fast bowler of Rajasthan Royals.

आईपीएल का इकबाल
दैनिक जागरण। May 01,
राजस्थान रॉयल्स के 18 वर्षीय युवा क्रिकेटर कामरान खान के पास खोने को कुछ नहीं है, लेकिन पाने के लिए सारा जहां है और इसी चाहत में वह आईपीएल-2 में नामी-गिरामी चैंपियन खिलाड़ियों के बीच चमक रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में एक निर्धन परिवार में जन्मे कामरान अपने सात भाइयों और दो बहनों में सबसे छोटे है। कामरान की कहानी फिल्म 'इकबाल' के नायक इकबाल से कुछ अलग नहीं है। इस फिल्म में जैसे इकबाल धूल से भरे मैदानों से निकल अचानक विश्व क्रिकेट के परिदृश्य में छा जाता है, उसी तरह गलियों में टेनिस बॉल से खेलने वाले कामरान ने भी दृढ़निश्चय और आत्मविश्वास के बल पर केप टाउन के हरे-भरे मैदान पर अपने प्रोफेशनल क्रिकेट जीवन में पहली बार लेदर की गेंद फेंकी।
कामरान खान के साथ राजस्थान रॉयल्स ने 12 लाख रुपये वार्षिक का कांट्रेक्ट किया है। कांट्रेक्ट के बाद कामरान ने एक इंटरव्यू में कहा, ''मैं अपनी खुशी का इजहार शब्दों में नहीं कर सकता। मैं जानता था कि एक दिन मैं किसी बड़ी टीम के साथ खेलूंगा, लेकिन इतनी जल्दी ख्वाब पूरा होने के बारे में नहीं सोचा था।''
कामरान के पिता अतीक अहमद एक लकड़हारे और मां मेहरुन्निसां गृहिणी थीं। इस समय दोनों इस दुनिया में अपने बेटे की सफलता देखने के लिए मौजूद नहीं है। कामरान के बड़े भाई शमशाद अभी भी उनकी सफलता पर भरोसा नहीं कर पा रहे है। वह कामरान को क्रिकेट खेलने से रोका करते थे। शमशाद कहते है, ''मैं क्रिकेट के खिलाफ नहीं था। दरअसल हम लोग बहुत गरीब परिवार से है और हमारे पास जीवन व्यतीत करने के बहुत कम साधन हैं। मैं चाहता था कि वह कुछ कमाने लगे। अब मेरा भाई क्रिकेट खेल कर कमाई करेगा।''
कामरान के कोच नौशाद खान बताते है, ''मैं ढाई साल पहले आजमगढ़ स्थित अपने गांव बासुपुर गया था। वहां मैंने कामरान को एक धूल भरे मैदान में टेनिस बॉल से खेलते देखा। उसमें छिपे जबरदस्त उत्साह को देखकर मैं समझ गया कि इसमें बहुत आगे जाने का दम है। मैंने उसे मुंबई आकर ट्रेनिंग लेने के लिए आमंत्रित किया।''
मुंबई आने के बाद नौशाद ने उनकी अपने घर में रहने और भोजन की व्यवस्था की। कामरान उनकी निगरानी में अपनी गेंदबाजी निखारने लगे। कामरान जब मुंबई के बाहर किसी शहर ट्रायल देने जाते, तो तंगहाली के कारण प्लेटफार्म टिकट लेकर स्टेशन पर ही रात गुजारते थे। वह ट्रायल में खाली पेट या चाय-बिस्कुट खाकर बॉल फेंकते थे। ट्रायल देने के लिए वह अपने एक जोड़ी ट्रैक सूट और फटे जूतों में ही जाते थे।
नौशाद खान कामरान के जीवन में आए टर्निग प्वाइंट के बारे में बताते है, ''कामरान मूलत: टेनिस बॉल प्लेयर था। हमने इसे तालीम शील्ड मैच में खेलने का मौका दिया। वहां इसने अच्छी बॉलिंग के साथ ही अपनी बैटिंग से भी प्रभावित किया। इसने 20 गेंद पर 60 रन की धुआंधार पारी खेली। उसके बाद मैंने मुंबई पुलिस स्क्वाड को इसे डीवाई पाटिल टी-20 टूर्नामेंट में खिलाने के लिए राजी किया। वहां इसने बहुत अच्छी गेंदबाजी की। एक मैच में इसने केवल 10 रन देकर तीन विकेट लिए। कामरान की किस्मत अच्छी थी, जो मैच देखने राजस्थान रॉयल्स के कोचिंग निदेशक डैरेन बैरी भी वहां मौजूद थे। डैरेन ने कामरान को अपनी टीम के प्रैक्टिस मैचों में भेजने के लिए कहा। प्रैक्टिस मैचों में भी कामरान ने तीन मैचों में बेहद कम रन देकर सात विकेट लिए।''
नौशाद आगे बताते है, ''इन मैचों के बाद एक दिन डैरेन कामरान को अलग ले गए और खुद को एक ओवर फेंकने को कहा। उसने पहली दो गेंद यार्कर, दो बाउंसर, एक गुड लेंथ और आखिरी बॉल स्लोअर डाली। कामरान की बॉलिंग परफेक्ट थी। डैरेन उससे बहुत अधिक प्रभावित हुए और आईपीएल के लिए कांट्रेक्ट का ऑफर दिया। हमें उसके बाद मुंबई इंडियंस से भी ऑफर मिला, लेकिन कामरान ने राजस्थान रॉयल्स के लिए खेलने का निर्णय लिया।''
नौशाद अफ्रीका से कामरान के आए फोन के बारे में बताते है, ''उसने मुझे कहा कि वह एक दिन भारतीय टीम में खेलना चाहता है। मैंने उससे कहा कि यह तुम्हारी किस्मत पर निर्भर करेगा।'' कामरान 10 मार्च को 18 वर्ष के हुए है और अपने गांव के एक स्कूल में कक्षा सात के छात्र हैं। उनके उत्साह और प्रतिभा को देखकर लगता है कि जल्द ही विश्व क्रिकेट को वसीम अकरम जैसा एक और गेंदबाज मिलने वाला है!