Saturday, August 8, 2009

Prakash Padukone "Great badminton player".


बैडमिंटन का माहानायक: प्रकाश पादुकोण


भारत में जब भी खेलजगत के महारथियों की बात की जाएगी, कुछ ही खिलाड़ी होंगे, जो प्रकाश पादुकोण की बराबरी कर सकेंगे। वह जब तक खेलते रहे, हमेशा शीर्ष पर रहे। बैडमिंटन के यह विश्वविजेता खिलाड़ी अर्जुन अवार्ड और पद्मश्री प्राप्त कर चुके हैं। सकारात्मक विचारों के धनी प्रकाश अपनी मीठी भाषा और विनम्र व्यक्तित्व से हर किसी को अपना प्रशंसक बना लेते है।
10 जून 1955 को बंगलुरु में जन्मे प्रकाश आज भी खुद को अपनी जड़ों से जोड़े हुए है। कई वर्षो तक मैसूर बैडमिंटन एसोसिएशन के सेक्रेटरी रहे उनके पिता रमेश पादुकोण ने उनका परिचय बहुत छोटी उम्र में ही इस खेल से करा दिया था। 6 वर्ष की उम्र में स्टेट जूनियर चैंपियनशिप में अपना पहला मैच हारने के बाद उन्होंने कोर्ट छोड़ने से मना कर दिया, फिर मैसूर बैडमिंटन एसोसिएशन के नया रैकेट देने के वादे के बाद वह वहां से हटे। उनके अनुसार, ''मुझे याद है कि मैं बहुत अपसेट हो गया था। अच्छा खेलने के बावजूद खराब रैकेट ने मुझे हार के मुंह में धकेल दिया था।''
दो साल बाद प्रकाश ने मैसूर स्टेट जूनियर चैंपियनशिप का खिताब जीत लिया और उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1970 में उन्होंने पहली बार नेशनल जूनियर चैंपियनशिप पर कब्जा किया। जबलपुर में एक मैच के दौरान अपने आदर्श खिलाड़ी रूडी हार्टोन का आक्रामक खेल देखकर उन्होंने अपने खेल को भी आक्रामक शैली में ढाल लिया। इस आक्रामक और फुर्तीले खेल से 1971 में एकसाथ जूनियर और सीनियर नेशनल खिताब जीतकर वह 'साइलेंट टाइगर' के नाम से मशहूर हो गए।
प्रकाश ने इसके बाद लगातार नौ बार नेशनल सीनियर खिताब पर कब्जा जमाए रखा। 1978 में प्रकाश ने कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मैडल भी जीता। उन्होंने लीम स्वी किंग को सीधे सेटों में हराकर 1980 में ऑल इंग्लैंड ओपन का खिताब अपने नाम किया, जो उनके कॅरियर के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। यह टूर्नामेंट जीतने के बाद वह विश्व की नंबर एक वरीयता पर आ गए।
1980 में स्वीडिश ओपन के दौरान रूडी हार्टोन को हराने के बाद जब उनसे पूछा गया कि 'अपने आदर्श खिलाड़ी को हराकर आप कैसा महसूस कर रहे है?' उन्होंने विनम्रता से कहा, ''मैंने पिछले गेम में उन्हें 15-0 से हरा दिया होता, लेकिन मैं अपने आदर्श खिलाड़ी के साथ ऐसा नहीं कर सकता था। इसलिए मैंने एक प्वाइंट छोड़कर मैच खत्म कर दिया।''
अपने कॅरियर में सैकड़ों सितारे जड़ने वाले प्रकाश को भारत सरकार ने 1972 में अर्जुन अवार्ड और 1982 में पद्मश्री से सम्मानित किया। उन्होंने 1988 में प्रोफेशनल बैडमिंटन से विदा ली। 1991 में कुछ समय के लिए उन्होंने नेशनल बैडमिंटन एसोसिएशन के चेयरमैन के रूप में काम किया। 1993 और 1996 में वह भारतीय राष्ट्रीय टीम के कोच भी रहे।
वर्तमान में प्रकाश बंगलुरु स्थित अपनी बैडमिंटन अकादमी में भारत के लिए युवा प्रतिभाओं को निखारने का काम कर रहे है। उनकी अकादमी में चुने गए प्रशिक्षुओं को पढ़ने, रहने और खाने-पीने के लिए संपूर्ण छात्रवृत्तिमिलती है। उनकी अकादमी के प्रशिक्षुओं ने स्टेट, नेशनल और इंटरनेशनल चैंपियनशिप्स में जीत दर्ज की है। प्रकाश अपने अनुभवों से उन्हे उत्साहित करके प्रभावशाली खेल के गुर सिखाते है। खाली समय में वे स्क्वॉश खेलना और अपनी फिल्म अभिनेत्री बेटी दीपिका पादुकोण से बात करना पसंद करते है!